बहुत ज्यादा सोचना क्या हमारे लिए सही है इसके नुकसान क्या क्या है चलिए जानते है।
सोचना तो हम इनसानों की फितरत है। शोधों से भी पता चलता है कि रोजाना 60,000 विचार आते हैं औसत व्यक्ति के मन में। तो फिर अति विचारक यानी ओवरथिंकर होना, क्या इतना बड़ा मसला है कि इस पर बात होनी चाहिए। कुछ लोगों को यह फिजूल की बात लग सकती है। लेकिन इस पर बात करना जरूरी है, क्योंकि यह कई तरीकों से आपको नुकसान पहुंचा सकता है। इस बारे में क्या कहना है विशेषज्ञों का चलिए जानते है।
ऑफिस में अगर मैं अपना प्रेजेंटेशन सही से नहीं कर पाया तो? कहीं मुझे नौकरी से न निकाल दिया जाए! इससे मैं कहीं अपने सहकर्मियों के बीच हंसी का पात्र न बन जाऊं! अगर मुझे नौकरी से निकाल दिया तो! पक्का ऐसा ही होगा, जैसे ही कल मैं ऑफिस जाऊंगा, मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा जाएगा! मुझे पहले से ही अपना त्यागपत्र लिख कर तैयार कर लेना चाहिए? वैसे भी मुझसे बेहतर काम करने वाले हैं यहां? फिर मेरे सीनियर मुझे रोकना क्यों चाहेंगे ?
यहां बात सिर्फ इतनी है कि ऑफिस में कई लोगों के सामने प्रेजेंटेशन देना है। कामकाजी जीवन की इस सामान्य गतिविधि को ओवरथिंकिंग ने तिल से ताड़ बना दिया। ये है अति विचारक यानी ओवरथिंकर का मन, जिसमें उनके दिमाग की आभासी दुनिया में लगातार कई विचार आते रहते हैं। इस आदत के शिकार लोग चैन खो देंगे, नींद उड़ा देंगे, आत्मविश्वास कम कर लेंगे, पर सोचना कम नहीं करेंगे, क्योंकि यह उनके वश में ही नहीं है।
ओवरथिंकिंग है क्या
इस बाबत श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटॺूट की साइकोलॉजिस्ट डॉ. पल्लवी जोशी कहती हैं,‘किसी चीज के बारे में बहुत अधिक या बहुत लंबे समय तक सोचना ही ओवरथिंकिंग की निशानी है। कोई भी निर्णय लेने या किसी भी स्थिति से निपटने से पहले उसके बारे में सोचना जरूरी है और यह स्वाभाविक भी है। लेकिन जब आप किसी समस्या या कोई जरूरत के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं, तो यह मानसिक और शारीरिक सेहत पर असर डालने लगता है। आप फिर अन्य कामों में ध्यान नहीं लगा पाते। ऐसे लोग अकसर उन सभी चीजों के बारे में चिंता करने लगते हैं, जो गलत हो सकती हैं।’
अहम सवाल यह है कि दिमाग की आभासी दुनिया में उठने वाले विचार, वाकई क्या इतने शक्तिशाली होते हैं कि हमारे पूरे व्यक्तित्व को बदल दें। इस पर विश्वास तो नहीं होता, लेकिन एक ब्लॉग की एक पोस्ट से अहसास हुआ कि ‘ज्यादा सोचना’ हमारी सोच से भी कहीं अधिक खतरनाक है।
विचारों पर काबू पाने में महीनों लगे
‘कभी-कभी, मैं सालों पहले हुई उस अजीब घटना को याद करने लगता था, जिससे तब मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई थी। मैं उसे अपने मन में बार-बार दोहराने लगता था। कभी-कभी मैं सोचता था कि क्या होगा अगर कोई मुझसे प्यार नहीं करेगा? क्या होगा मैं अकेले ही मर जाऊं…? ऐसा सोचते हुए कई रात सो नहीं पाता था। ऐसी समस्याएं पैदा करना जो मौजूद ही नहीं हैं और जो मौजूद हैं, उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना। इस तरह अपने खुद के विचारों से जूझते हुए मैंने अपनी जिंदगी के कई साल निकाल दिए। मगर मुझे पता ही नहीं चला कि मैं ओवरथिंकिंग की गिरफ्त में हूं, जिसने मुझे नकारात्मक बना दिया था। इस तरह मुझे करीब दो साल लगे हैं, इससे बाहर निकलने में। उन दो वर्षों ने मुझे सिखाया कि अपने दिमाग पर काबू पाना एक सतत प्रक्रिया है। फिलहाल यात्रा जारी है, मगर एक मजबूत, शांत मानसिकता के साथ।’ यह कहना है गोपाल राणे का (बदला नाम)।
तो वाकई ज्यादा सोचना इतनी बड़ी समस्या है कि उससे बाहर निकलने में लोगों को सालों लग जाएं। इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं एक नकारात्मक विचार को हटाने के लिए दिमाग को पांच सकारात्मक विचार की जरूरत होती है, एक शोध के अनुसार। तो सोचिए एक नकारात्मक विचार आपके दिमाग में कितनी जगह लेता होगा।
60 हजार विचारों का झमेला
आपको अंदाजा है कि एक दिन में औसतन छह से साठ हजार विचार आप अपने दिमाग में बना लेते हैं या इससे ज्यादा भी। एक शोध का निष्कर्ष बताता है कि एक व्यक्ति के मन में रोजाना करीब 60,000 विचार आते हैं, जिनमें से 75 फीसदी विचार नकारात्मक होते हैं और 95 फीसदी बार-बार दोहराए जाने वाले होते हैं। मनोविशेषज्ञों की मानें तो नकारात्मक और बार-बार दोहराए जाने वाले विचारों की यह निरंतर बौछार हमारी मानसिक सेहत, खुशी और जीवन की समग्र गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
अतिविचारक होने के ये हैं खतरे
हम अकसर अतीत में हुई गलतियों को और भविष्य में होने वाले संभावित हादसे के बारे में इतना सोचने लगते हैं कि वो सच में हो जाता है। इसका बेहतर उदाहरण आपको रोड ट्रिप में मिल सकता है कि पहाड़ी एरिया में गाड़ी चलाता ड्राइवर जब खाई से बचने के लिए खाई की तरफ देखना शुरू करता है तो गाड़ी अपने आप ही उस किनारे पहुंचने लगती है। दरअसल, हमारा दिमाग हमारे शरीर को सुरक्षित रखने के लिए संभावित खतरों, नकारात्मक बातों या हमारे डर को सबसे आगे रखता है। ऐसे में जब हम ज्यादा सोचते रहते हैं, तो मन में नकारात्मकता बढ़ने लगती है, जिसकी अति घबराहट, एंग्जायटी और डिप्रेशन तक का रूप ले लेती है। जर्नल ऑफ एबनॉर्मल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में भी बताया गया है कि अपनी कमियों, गलतियों और समस्याओं पर विचार करने से मानसिक समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। यह आपको समाधान खोजने के बजाय समस्या पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करने लगता है।
वहीं ह्यूस्टन मेथोडिस्ट में प्रोफेशनल वेलनेस के निदेशक डॉ. जे. क्रिस्टोफर फॉलर का कहना है कि हमारा मस्तिष्क एक ऐसा प्रोसेसर है, जो रोजाना 35,000 से अधिक बार सचेत और अवचेतन निर्णय लेता है। लेकिन अगर हम हर चीज पर जरूरत से ज्यादा विश्लेषण करने में फंसेंगे, तो इसका नुकसान भी हो सकता है। इस तरह ज्यादा सोचने के और भी कई खतरे हैं-
●मानसिक बीमारी की आशंका बढ़ जाती है।
●यह समस्या समाधान में बाधा डालता है।
●यह आपकी नींद में खलल डाल सकता है। मतलब,
यदि आप बहुत अधिक सोचने वाले व्यक्ति हैं, तो जब तक आपका दिमाग बंद नहीं होता, आप सो नहीं सकते।
●भूख की कमी हो सकती है।
●धीरे-धीरे आत्मविश्वास में कमी हो सकती है।
●यही नहीं सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में भी समस्याएं आने लगती हैं।
स्वास्थ्य आपके दिमाग से शुरू होता है
मनोविशेषज्ञों की मानें तो 99 फीसदी नुकसान आपके दिमाग में उठ रहे आपके विचारों के कारण होता है। मतलब, जिस तरह से किसी मुद्दे के बारे में सोचते हैं, वही समस्या है। डॉ. पल्लवी कहती हैं कि इस पर काबू पाने के लिए सबसे पहले ध्यान और योग को अपने जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा। ये मन को शांति देते हैं और सोचने की आदत पर नियंत्रण आता है।
●हर महीने कुछ नया पढ़ने की कोशिश करें। हर छह महीने में कुछ नया सीखने की कोशिश करें। जब हम कोई नया काम कर रहे होते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान उस काम को ठीक से करने में केंद्रित रहता है।
●अपनी दिन भर की बातें या मन में उमड़ते ख्यालों को लिखना शुरू करें। शोधों में पाया गया है कि कागज पर लिखे शब्द मन हल्का करने में फायदेमंद होते हैं।
99 फीसदी खुद की हानि होती है ज्यादा सोचने से, मनोविशेषज्ञों के अनुसार। क्योंकि हमारा दिमाग छोटी-छोटी समस्याओं को बड़ी बाधाओं में बदलने की क्षमता रखता है।
● अत्यधिक सोचने वाले का दिमाग एक फेयरी व्हील की तरह होता है, जो लगातार विचारों, चिंताओं और ख्यालों के साथ घूमता रहता है।
● वे छिपे हुए अर्थ खोजने में विशेषज्ञ होते हैं, जिनमें जासूसों की तरह पंक्तियों के बीच की बातें भी पढ़ने का हुनर होता है।
● ‘क्या होगा अगर?’ इस एक वाक्य से, वे अपने दिमाग में हर संभावना और परिणाम की खोज करते हुए एक पूरी वैकल्पिक वास्तविकता भी बना सकते हैं।
● वे परफेक्शनिज्म के साक्षात प्रतिरूप होते हैं। जो हर काम में सर्वोत्तम के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन दोषहीनता की खोज में अकसर वे फंस जाते हैं।
● इनमें सामान्य परिस्थितियों में भी भयावह परिणामों की कल्पना करने की अनूठी प्रतिभा होती है।
● इनमें पिछली गलतियों पर सोचने और छूटे अवसरों पर पछताने की अनोखी क्षमता होती है।
● ये अपने विचारों के तले दबे हो सकते हैं, जिससे मानसिक थकान हो सकती है।
● ऐसे लोगों में भावनाओं की गहरी समझ होती है।
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